क्यों नहीं सुनाती आज दादी हमें कहानी....


एक जमाना हुआ करता था जब हम रात में सोते वक़्त हमारी दादी माँ से कहानी सुनाने की जिद्द किया करते थे। और एक जमाना आज है जब न तो वो कहानी सुनाने वाली दादी माँ है और न ही कहानीसुनाने की जिद्द करने वाले बच्चे है। आज के बच्चो का बचपन तो केवल कम्पुटर गेम तक ही सीमित रह गया है। बच्चो की जिद्द पूरी करने वाली दादी माँ भी आज के आधुनिककारन की शिकार हो गयी है और इसी का नतीजा है की यदि कोई बच्चा भूल से कहानी सुनाने की जिद्द भी करे तो भी उस दादीमा को बोरियत महसूस होती है। मई तो जब भी अपनी बचपन को याद करता हु तो मुझे केवल जगजीत सिंह जी की गेई हुई गजल की ये पंक्तिया याद आती है की '' ये दोलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी, मगर मुझ को लोटा दो बचपन का सावन , वो कागज की कसती वो बारिस का पानी।"

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  1. यह पोस्ट समाज की वास्तविकता को उजागर करती है |

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