पचपन मेँ बचपन


वो बचपन मुझे मेरा आज भी कुछ यूं लगता है जैसे कल की ही बात हो। वो आपस मेँ हम बच्चो की नटखट शरारते, वो मेरा बात बात पर हठ कर लेना पर तब तो मेरी वो जिद्दोँ को पूरा कर दिया जाता था पर आज तो जब मेरी उम्र पचपन की है ना तो मेरी बात कोई सुनता है और ना ही सुनना चाहता है। ना तो मेरे बच्चो से ही मुझे वो प्यार मिला और ना ही वो सम्मान मिला जिसकी चाहत मुझे जिन्दगी के तीस सावन पहले से थी। जब मैँ बचपन मैँ कई बार खाना खाने मे देर कर देता था तो घरवालो को इस बात की चिँता हो जाया करती थी की मैँने अभी तक खाना क्यूँ नही खाया, लेकिन आज किसी को कोई चिन्ता नही है मेरे खाने को लेकर भलेँ ही मैँ भूखा रहूँ या प्यासा। मै जब बचपन मै कभी बीमार पड़ जाता था तो मेरे सारे परिवार के लोगो को चिंता हो जाती थी पर आज तो जब मै बीमार हो जाता हु तो बजाय चिंता के सभी और खासकर बहुये मुझे ही ताने देती रहती है की कम से कम हमें तो अपनी तबियत से परेशान न करो और ज्यादा दुःख तो मुझे उस समय होता है जब मेरे बेटे भी अपनी पत्नी की तरफदारी करने से नहीं थकते भले ही गलती उनकी प्रिय पत्नी की ही क्यों न हो। आज न ही हम बचपन के वो सारे दोस्त एक दुसरे से मिल पाते है क्योंकी सभी के साथ मेरी जैसी समस्याये है जिनका जिक्र एक दुसरे के सामने करने में भी शर्म सी आती है। आज मेरे मन की हसरते मन की मन में ही दब गयी है जैसे अंग्रेजो ने भारतीयों के आंदोलनों को दबा दिया था। इन सभी हालातो से तंग आकर उस ऊपर वाले si में यही baat कहना चाहूँगा की काश मुझे बचपन mera मिलाता उम्र पचपन में, जब सबसे ज्यादा समय मेरा, गुजरा सिर्फ कचकच में।

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