गजब किया तेरे वादे पे एतबार किया..............

आखिर कब तक हम उस मुल्क का, उस मुल्क के उन लोगो का जिन्हें सिवाय दहशतगर्द के अलावा कुछ भी नहीं कहा जा सकता पर यकीं करे। आखिर क्यों हम उन लोगो के प्रति मानवता के व्यवहार की आशा रखे जिनके लिए इस शब्द का कोई मतलब नहीं है। पिछले कई दिनों से मै चुप रहा और सिर्फ देखता ही रहा हमारे देश की शर्गर्मियो को, जिसमे भ्रष्टाचार को मिटाने की मुहीम भी शामिल थी सोचा की लोगो की जागरूकता बहुत बढ गयी है और एक हद तक ये सही भी है लेकिन हमारी जागरूकता देश की सुरक्षा के सन्दर्भ में कहा चली जाती है। क्या इस प्रकार की जागरूकता जो की हाल ही में अन्ना ने दिखाई है की जरुरत देश की सुरक्षा के प्रति नहीं होनी चाहिए। हमारे पडोसी मुल्क हमें एक से बढ़कर एक जख्म दिए जा रहे है और हम है की शिवाय उन्हें सहने की कुछ भी नहीं कर पा रहे है । और फिर एतबार किये जा रहे है उन लोगो का जिनकी आदत ही धोखा देने की रही है । जी हाँ मेरा यह गुस्सा दिल्ली मे हुए हमलो के लेकर है जिनके प्रति शायद आज भी सरकार नहीं जागी है । आज सुबह ही जब अखबार पढ़ रहा था तो ये ख्याल आया की क्यों ना आप सभी के माध्यम से सरकार के कानो तक बात पहुचाई जाए की अब तो कुछ करो उस अफजल का जो की देश की शांति का काल बना हुआ है। अफजल की फांसी को लेकर राजनीती कर रहे उन धूर्त नेताओं को भी मे ये सन्देश देना चाहूँगा की जिस तरह से लोकपाल बिल के लिए जनता एक साथ खडी नज़र आई है ठीक उसी प्रकार अब देश की सुरक्षा को लेकर खडी नज़र आएगी। अफजल को फांसी देने से कोई भी कौम नाराज़ नहीं हो सकती आखिर वो तो किसी कौम का था ही नहीं क्योकि आतंकवादियों की, देशद्रोहियों की ना कोई कौम होती है और ना ही कोई धर्म और ना ही कोई मजहब। क्योकि देल्ली हमले में सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भाइयो का भी कतार बहा है और कोई भी भाई अपने भाई का कतरा नहीं बहा सकता। और यदि अफजल को फांसी नहीं दी जाती है तो इससे देश के युवाओं को केवल एक ही सन्देश जाएगा की देश द्रोही बनो और सरकारी मेहमान की इज्जत पाओ। हमारी भलाई इसी में है की हम जागे भले ही सरकार सोती रहे। क्योकि जो आज दिल्ली में हुए हमलो के पीडितो के साथ हुआ है वो कल हमारे साथ भी हो सकता है और इससे बचने का एक मात्र उपाय इसके खिलाफ आवाज़ उठाने से ही संभव है। हमने हमारे पडोसी मुल्को पर बड़ा भरोसा कर लिया अब बारी उनसे सख्ती के साथ निपटने की है । पाकिस्तान को अब हमें बताना होगा की बहुत हुआ तेरे पे एतबार करना अब तो बारी हमारी है। मुझे तो सिर्फ पंकज उदास की यही पंक्ति अब याद आती है की गजब किया, तेरे वादे पे एतबार किया.........................................

Comments